जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, त्योहार देवी सावित्री की भक्ति का प्रतीक है, जिन्होंने यमराज से अपने पति सत्यवान के जीवन को पुनः प्राप्त किया. इस दिन, विवाहित महिलाएं पूरे रीति रिवाज के साथ व्रत रखती हैं, नए कपड़े और आभूषण पहनती हैं और पूजा करती हैं. वे बरगद के पेड़ के चारों ओर एक पवित्र धागा भी बांधती हैं और सावित्री और सत्यवान की महान कथा सुनती हैं. जिन लोगों को पता नहीं है तो उन्हें बता दें कि ‘वट’ बरगद के पेड़ के लिए किया जाने वाला शब्द है, जो अनुष्ठान में बहुत महत्व रखता है. ऐसा कहा जाता है कि देवी सावित्री ने एक बरगद के पेड़ के नीचे अपने पति का जीवन वापस पा लिया था।

हिन्दू धर्म में ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा महत्त्वपूर्ण है। ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन स्त्रियाँ वट वृक्ष की पूजा कर के पूरे दिन व्रत रखती हैं। इसे वट सावित्री व्रत कहा जाता है। स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है। सौभाग्य और संतान प्राप्ति के लिए महिलाओं द्वारा ये व्रत किया जाता है। इसी दिन यानी ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर गंगा स्नान कर के पूजा-अर्चना करने से मनोकामना पूरी होती है। इसी दिन से ही लोग गंगा जल लेकर अमरनाथ यात्रा के लिए भी निकलते हैं।

वट पूर्णिमा व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की सलामती और लंबी उम्र के लिए रखती हैं। पूर्णिमांत कैलेंडर यानी पूर्णिमा से शुरू होने वाल हिन्दू महीने में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या पर मनाया जाता है, जो शनि जयंती के साथ पड़ता है। वहीं अमांत कैलेंडर यानी अमावस्या से हिन्दू महीने की शुरुआत वाले कैलेंडर में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा पर मनाया जाता है, जिसे वट पूर्णिमा व्रत भी कहा जाता है। इसलिए महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिणी भारतीय राज्यों में विवाहित महिलाएं उत्तर भारतीय महिलाओं की तुलना में 15 दिन बाद वट सावित्री व्रत मनाती हैं।

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