आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी : देवशयनी एकादशी
आषाढ़ शुक्ल एकादशी वाले दिन श्री भगवान विष्णु अग्रिम चार महीनों के लिए शयन करते है।इनके अंतर्गत यदि कोई भी मास अधिक हो जाए, तो इनका(विष्णु जी का) शयनकाल पांच मास माना जाता है।इस (आषाढ़ शुक्ल एकादशी के) दिन पूर्वरात्रि में षोडशोपचार पूजन के बाद सुसज्जित मंच पर भगवान विष्णु को सुलाकर निम्न मंत्र पढ़ा जाता है —
“ॐ त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्धे त्वयि बुद्ध्येत तत्सर्व सचराचरम्।।”
इस उत्सव को ‘हरिशयनोत्सव’ या ‘देवशयनोत्सव’ भी कहा जाता है।देवशयनोत्सव के बाद चार मास बीतने पर कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान नारायण निद्रा त्याग करते है।इसीलिए कार्तिक शुक्ल एकादशी को हरिप्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है।
श्री हरि के जागने पर भी इनकी षोडशोपचार पूजन की जाती है,विष्णु–शयनावधि के इन चार/पांच मासों में अधिकतर प्रांतों में मांगलिक कृत्य नहीं किए जाते।
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